संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम के तहत अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए हस्तांतरण कैसे किया जाता है?

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 13 के तहत अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए संपत्ति का हस्तांतरण किया जा सकता है। इसमें पहले एक जीवित व्यक्ति के पक्ष में जीवनहित का सृजन और अजन्मे व्यक्ति को संपत्ति में पूर्ण हित का प्रावधान होता है।

परिचय

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 भारतीय कानून में एक महत्वपूर्ण कानून है जो जीवित व्यक्तियों के बीच संपत्ति के हस्तांतरण को नियंत्रित करता है। संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 5 में यह प्रावधान है कि ऐसे हस्तांतरण जीवित व्यक्तियों के बीच होने चाहिए। हालाँकि, अधिनियम के भीतर ऐसे प्रावधान हैं जो उन व्यक्तियों के लाभ के लिए संपत्ति के हस्तांतरण को संबोधित करते हैं जो अभी तक पैदा नहीं हुए हैं। संपत्ति कानून के अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए हस्तांतरण मुख्य रूप से संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत आता है[1]।

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 13

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 13 अजात व्यक्ति (अर्थात, जो व्यक्ति अभी तक जन्मा नहीं है) के फायदे के लिए संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित है[2]। इस धारा के अंतर्गत निम्नलिखित मुख्य बिंदु शामिल हैं:

1. अजात व्यक्ति के लिए हस्तांतरण: यदि कोई व्यक्ति किसी अजात व्यक्ति के लाभ के लिए संपत्ति का हस्तांतरण करता है, तो यह हस्तांतरण मान्य होगा। इसका अर्थ है कि संपत्ति को उस व्यक्ति के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है जो अभी तक जन्मा नहीं है।

2. शर्तें: इस धारा के अंतर्गत, यह आवश्यक है कि अजात व्यक्ति का जन्म होना चाहिए ताकि वह संपत्ति का वास्तविक लाभ उठा सके। यदि अजात व्यक्ति का जन्म नहीं होता है, तो संपत्ति का हस्तांतरण प्रभावी नहीं होगा।

3. कानूनी सुरक्षा: यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि अजात व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा की जाए और उसके लिए संपत्ति का हस्तांतरण कानूनी रूप से मान्य हो।

  • सामान्यतया सम्पत्ति का अन्तरण एक अजात (अजन्मे) व्यक्ति को सीधे-सीधे नहीं किया जा सकता क्योंकि सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 5 के अनुसार सम्पत्ति का अन्तरण जीवित व्यक्तियों के बीच ही सीमित है। जीवित व्यक्तियों की परिभाषा के अन्तर्गत अजात व्यक्ति नहीं आता। अजात व्यक्ति से तात्पर्य जो अस्तित्व में नहीं है। परन्तु इस धारा के प्रावधानों के अनुसार अजात व्यक्ति 'के लाभ के लिए' सम्पत्ति का अन्तरण किया जा सकता है।
  • धारा 'अजात' व्यक्ति उसे मानती है जो सम्पत्ति के अन्तरण की तिथि को अस्तित्व में न हो। परन्तु वह बच्चा जो गर्भ में है (A child en ventre sa mere-that is a child in womb) उसे आंग्ल[3] एवं हिन्दू[4] दोनों विधियों के अनुसार अस्तित्व में माना जाता है। अतः वह बच्चा जो गर्भ में है, वह एक सक्षम अन्तरिती हो सकता है। दूसरे शब्दों में वह व्यक्ति जो गर्भ में है उसे सम्पत्ति का अन्तरण किया जा सकता है।
  • अजात व्यक्ति के पक्ष में हित के अन्तरण पर कोई वर्जना नहीं है। सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 20 यह अनुमति देती है कि अजात व्यक्ति के लाभ के लिये हित का सृजन किया जा सकता है जो अपने जन्म. पर हित अर्जित करता है। ऐसे किसी उपबन्ध की ओर न्यायालय का ध्यान नहीं आकृष्ट कराया गया जो यह शर्त लगाता हो कि अजात व्यक्ति के पक्ष में सम्पत्ति में पूर्णहित का सृजन नहीं किया जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने एफ० एम० देवास गनपति भट्ट बनाम प्रभाकर गनपति भट्ट[5] नामक वाद में कहा।

दृष्टान्त

'क' उस सम्पत्ति का, जिसका वह स्वामी है, 'ख' को अनुक्रमशः अपने और अपनी आशयित पत्नी के जीवनपर्यन्त के लिए और उत्तरजीवी की मृत्यु के पश्चात् आशयित विवाह के ज्येष्ठ पुत्र के जीवनपर्यन्त के लिए और उसकी मृत्यु के पश्चात् 'क' के दूसरे पुत्र के लिए न्यास के रूप में अन्तरित करता है। ज्येष्ठ पुत्र के फायदे के लिए इस प्रकार सृष्ट हित प्रभावशाली नहीं होता है क्योंकि उसका विस्तार उस सम्पत्ति में 'क' के सम्पूर्ण अवशिष्ट हित पर नहीं है।

धारा 13 के तहत अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए हस्तांतरण के अंतर्निहित सिद्धांत

धारा 13 के तहत अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए संपत्ति के हस्तांतरण के अंतर्निहित सिद्धांत निम्नलिखित हैं:

  1. अधिकारों की सुरक्षा: यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि अजन्मे व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा की जाए। यदि कोई व्यक्ति किसी अजन्मे बच्चे के लिए संपत्ति का हस्तांतरण करता है, तो यह सुनिश्चित किया जाता है कि जब वह बच्चा जन्म लेगा, तो उसे संपत्ति का लाभ मिल सकेगा।
  2. भविष्य की संभावनाएँ: इस सिद्धांत के अनुसार, अजन्मे व्यक्ति के लिए संपत्ति का हस्तांतरण एक संभावित भविष्य की स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है। यह विचार किया जाता है कि यदि व्यक्ति का जन्म होता है, तो उसे संपत्ति का लाभ मिलना चाहिए।
  3. कानूनी मान्यता: धारा 13 यह सुनिश्चित करती है कि अजन्मे व्यक्ति के लिए संपत्ति का हस्तांतरण कानूनी रूप से मान्य है। यह सिद्धांत यह दर्शाता है कि कानून अजन्मे व्यक्ति के अधिकारों को मान्यता देता है और उनके लिए संपत्ति का हस्तांतरण वैध है।
  4. संपत्ति का संरक्षण: यह सिद्धांत यह भी दर्शाता है कि संपत्ति का हस्तांतरण केवल तब किया जा सकता है जब यह सुनिश्चित किया जाए कि अजन्मे व्यक्ति के लिए यह संपत्ति सुरक्षित रहेगी और उसके जन्म के बाद उसे लाभान्वित करेगी।

धारा 13 के तहत अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए स्थानांतरण के नियम

कोई प्रत्यक्ष हस्तांतरण नहीं

अजन्मे व्यक्ति को संपत्ति का सीधा हस्तांतरण स्वीकार्य नहीं है। हालाँकि, अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए संपत्ति हस्तांतरित की जा सकती है, बशर्ते कि कुछ विशेष शर्तें हों:

  1. पूर्व जीवन हित: अजन्मे बच्चे के लिए हस्तांतरण से पहले हस्तांतरण की तिथि पर मौजूद किसी व्यक्ति के पक्ष में जीवन हित होना चाहिए।
  2. पूर्ण हित: केवल पूर्ण हित (सीमित या आजीवन हित नहीं) ही अजन्मे व्यक्ति को हस्तांतरित किया जा सकता है।

सम्पत्ति का अन्तरण अजात व्यक्ति के लाभ के लिए किया जा सकता है उन शर्तों के अधीन जो धारा 13 में विहित किया है। वे शर्तें हैं:

1. पूर्विक हित के अधीन (Subject to prior interest)

धारा के प्रावधानों के अनुसार अजात व्यक्ति को सम्पत्ति दिये जाने से पूर्व उसी सम्पत्ति में एक पूर्विक हित का सृजन अवश्य किया जाना चाहिए।

दूसरे शब्दों में सम्पत्ति अन्तरण की तिथि और अजात व्यक्ति के अस्तित्व में आने के बीच किसी व्यक्ति में अवश्य ही निहित होनी चाहिए। इस तरह अन्तरणकर्ता और अजात व्यक्ति के बीच सम्पत्ति को धारित करने वाला एक जीवित बिचौलिया (intermediary) अवश्य होना चाहिए जो सम्पत्ति को न्यासी की भांति अजात व्यक्ति के लाभ के लिए धारित करेगा। ऐसा पूर्विक हित अनिवार्य रूप से एक सीमित हित होना चाहिए और जीवित व्यक्ति के पक्ष में होना चाहिए।

  • उदाहरणस्वरूप 'अ' अपनी सम्पत्ति 'ब' को आजीवन हित (life interest) के लिए और तत्पश्चात् 'ब' के अजात पुत्र को अन्तरण करता है। यह अन्तरण धारा 13 के प्रावधानों के अनुसार विधिमान्य है। यहां 'अ' सम्पत्ति का अन्तरण 'ब' के अजात पुत्र को करना चाहता है जो अन्तरण की तिथि को अस्तित्व में नहीं है। परन्तु वह अन्तरण सीधे-सीधे 'ब' के अजात पुत्र को नहीं कर सकता और उसी सम्पत्ति में उसने ('अ' ने) 'ब' के लिए आजीवन हित का सृजन किया है। इस तरह अन्तरणकर्ता 'अ' और 'ब' के अजात पुत्र के बीच 'ब' एक जीवित बिचौलिया है जो सम्पत्ति 'ब' के अजात पुत्र के लाभ के लिए धारित करता है।

2. अजात व्यक्ति को सम्पूर्ण हित (Only absolute interest to unborn person)

धारा 13 की दूसरी आवश्यकता यह है कि अजात व्यक्ति को जब हित प्राप्त होगा तो उसे सम्पूर्ण हित प्राप्त होगा।

दूसरे शब्दों में अजात व्यक्ति को पूर्विक हित की समाप्ति पर सम्पूर्ण अवशिष्ट हित (whole of the remainder) प्राप्त होगा। सम्पूर्ण अवशिष्ट हित से तात्पर्य है कि पूर्विक हित की समाप्ति पर बची हुई सम्पूर्ण सम्पत्ति अजात व्यक्ति को प्राप्त होगी।

अर्थात् धारा के प्रावधानों के अनुसार अजात व्यक्ति के पक्ष में आजीवन हित का सृजन नहीं किया जा सकता। आजीवन हित सीमित हित होता है और उसमें अन्तरिती पूर्ण स्वामित्व नहीं प्राप्त करता। जब अजात व्यक्ति में सीमित हित का सृजन किया जाता है तब यह धारा हस्तक्षेप करती है और कहती है कि आप ऐसा नहीं कर सकते। आपको अजात व्यक्ति को सम्पूर्ण हित देना होगा।

ध्यान रहे जब सम्पत्ति का अन्तरण उस व्यक्ति को किया जाता है जो अन्तरण की तिथि पर जीवित है तो उसके पक्ष में आजीवन हित का सृजन किया जा सकता है परन्तु अजात व्यक्ति के पक्ष में आजीवन हित का सृजन नहीं किया जा सकता।

  • उदाहरण के लिए 'अ' अपनी सम्पत्ति का अन्तरण 'ब' को जीवन काल के लिए और उसके पश्चात् 'स' को जीवन काल के लिए और तत्पश्चात् 'द' को जीवन काल के लिए करता है तो ऐसा अन्तरण वैध होगा यदि 'ब', 'स' एवं 'द' तीनों अन्तरण की तिथि पर जीवित हैं। यह धारा ऐसे अन्तरण को प्रतिबन्धित नहीं करती।
  • गिरजेश दत्त बनाम दातादीन[6] का एक महत्त्वपूर्ण वाद है। इस वाद के तथ्य इस प्रकार थे- एक सुग्गा नामक व्यक्ति ने अपनी सम्पत्ति रामकली को जो, उसके भतीजे की लड़की थी, दान किया और उसमें (रामकली में) आजीवन हित का सृजन किया और उसके बाद उसके पुरुष वंशजों को अगर उसके कोई हो और अगर उसके कोई पुरुष वंशज (लड़के) न हो तो रामकली की अजात लड़की को आजीवन हित, परन्तु यदि रामकली को कोई सन्तान न हो तो, भतीजे दातादीन को। रामकली की मृत्यु निःसन्तान हो जाती है। यह अभिनिर्धारित किया गया कि लड़की के पक्ष में किया गया दान धारा 13 के अन्तर्गत अविधिमान्य है, क्योंकि लड़की को सीमित हित (आजीवन हित) दिया गया था। उसे सम्पूर्ण हित नहीं दिया गया था। भतीजे दातादीन के पक्ष में किया गया दान भी धारा 16 के अन्तर्गत अविधिमान्य हो गया क्योंकि धारा 16 कहती है कि सम्पत्ति के अन्तरण में यदि पूर्विक हित असफल होता है (धारा 13 एवं 14 के किसी नियम के नाते) तो पश्चात्वर्ती हित भी, जो पूर्विक हित भी असफलता पर निर्भर है, असफल हो जायेगा।
  • आंग्ल विधि में इसे 'दोहरी सम्भावना' के विरुद्ध नियम, जिसे ह्वाइटवी बनाम मिचेल[7] नामक वाद में मान्यता मिली थी, कहा जाता है। दोहरी सम्भावना इसलिए कि यहां दो सम्भावनायें हैं-एक तो अजात व्यक्ति का जन्म लेना जिसे आजीवन हित दिया जा रहा है और दूसरा ऐसे | अजात व्यक्ति को सन्तानों का अस्तित्व में आना। परन्तु अब यह नियम इंग्लैण्ड में सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1925 के द्वारा समाप्त कर दिया गया है।

धारा 13 के तहत अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए स्थानांतरण के कानूनी परिणाम

धारा 13 के अंतर्गत संपत्ति हस्तांतरित करते समय:

  • मध्यस्थ व्यक्ति (जो हस्तांतरण की तिथि पर जीवित है) को केवल आजीवन हित दिया जाता है। इसका मतलब है कि उन्हें संपत्ति का आनंद लेने या उस पर कब्ज़ा करने का अधिकार है, लेकिन उन्हें इसे ट्रस्टी की तरह संरक्षित करना होगा।
  • जीवन हित की समाप्ति पर, सम्पूर्ण संपत्ति या हित उस अजन्मे व्यक्ति को हस्तांतरित हो जाता है जो अस्तित्व में आया है।
  • यदि अजन्मे व्यक्ति का जन्म जीवन हित की समाप्ति के बाद होता है, तो संपत्ति हस्तान्तरणकर्ता या उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को वापस मिल जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि संपत्ति स्थगित नहीं रह सकती।

धारा 13 के तहत अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए संपत्ति के स्थानांतरण के कानूनी परिणाम निम्नलिखित हैं:

  1. कानूनी मान्यता: अजन्मे व्यक्ति के लिए संपत्ति का स्थानांतरण कानूनी रूप से मान्य होता है। यदि संपत्ति का स्थानांतरण किसी अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए किया गया है, तो यह स्थानांतरण वैध माना जाएगा, बशर्ते कि अन्य कानूनी शर्तें पूरी की गई हों।
  2. अधिकारों का संरक्षण: जब संपत्ति का स्थानांतरण अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए किया जाता है, तो यह सुनिश्चित किया जाता है कि उस व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा की जाएगी। यदि वह व्यक्ति जन्म लेता है, तो उसे संपत्ति का लाभ प्राप्त होगा।
  3. संपत्ति का अधिकार: यदि अजन्मा व्यक्ति जन्म लेता है, तो उसे उस संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होगा, जिसका स्थानांतरण उसके लाभ के लिए किया गया था। यह अधिकार जन्म के समय से प्रभावी होता है।
  4. संभावित विवाद: यदि स्थानांतरण के समय कोई विवाद या चुनौती होती है, तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि अजन्मे व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन न हो। ऐसे मामलों में, न्यायालय अजन्मे व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप कर सकता है।
  5. संपत्ति का संरक्षण: स्थानांतरण के समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संपत्ति का संरक्षण किया जाए, ताकि अजन्मे व्यक्ति के जन्म के बाद उसे कोई हानि न हो। यदि संपत्ति को नुकसान पहुँचता है, तो यह अजन्मे व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

निष्कर्ष

अन्त में सारांश के रूप में हम यह कह सकते हैं कि सम्पत्ति का अन्तरण अजात व्यक्ति के लाभ के लिए किया जा सकता है परन्तु निम्नलिखित नियमों के अधीन:

  1. अन्तरण अजात व्यक्ति के पक्ष में सीधे-सीधे नहीं किया जा सकता है।
  2. जब तक कि अजात व्यक्ति अस्तित्व में नहीं आता है तब तक उसी सम्पत्ति में एक जीवित व्यक्ति के पक्ष में पूर्विकहित होना चाहिए।
  3. पूर्विक हित की समाप्ति पर सम्पत्ति में का सम्पूर्ण अवशिष्ट हित अजात व्यक्ति को दिया जाना चाहिए।
  4. अधिकतम अवधि जिसके लिए एक अजात व्यक्ति में सम्पत्ति का निहित होना विलम्बित किया जा सकता है वह है उसके अवयस्कता की अवधि। (यह नियम धारा 14 के अनुसार है)।

[1].संपत्ति अंतरण अधिनियम (डॉक्टर टी पी त्रिपाठी) 2011 संस्करण.

[2].संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (Last Updated on October 30, 2024).

[3].इन री विलियम्स ट्रस्ट, मूरे बनाम विंगफील्ड, (1903) 2 चांस 411; मुल्ला.

[4].टैगोर बनाम टैगोर, (1872) 9 बंगा० लॉ रिपो० 377, आई.

[5].ए० आई० आर० 2004 सु० को० 2665.

[6]. ए. आई. आर. 1934 ओयूडीएच 35:147 आई. सी.991,

[7].1890) 4 चांस० डि० 85.

Rashmi Acharya
What is the impact of Globalization on Investment Law?
Globalization has transformed investment law, shaping foreign direct investment (FDI) flows, regulatory frameworks, and investor protections. Bilateral treaties, dispute mechanisms, and economic integration reflect the evolving legal landscape of cross-border investments.
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What is the role of the International Centre for Settlement of Investment Disputes (ICSID)?
The International Centre for Settlement of Investment Disputes (ICSID) provides a neutral forum for resolving disputes between states and foreign investors. Established in 1966 under the ICSID Convention, it ensures impartial arbitration and conciliation, fostering investment stability.
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What are Bilateral Investment Treaties (BITS)?
Bilateral Investment Treaties (BITs) are agreements between two states that protect foreign investors by ensuring fair treatment, preventing expropriation, and providing dispute resolution mechanisms.
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