संपत्ति कानून में सशर्त हस्तांतरण क्या है?

संपत्ति कानून में सशर्त हस्तांतरण का तात्पर्य ऐसे लेनदेन से है, जो किसी शर्त की पूर्ति पर निर्भर करते हैं। शर्तें वैध, कानूनी, नैतिक और संभव होनी चाहिए। यह अवधारणा संपत्ति लेनदेन को विशिष्ट आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार ढालने में सहायक है।

संपत्ति कानून में सशर्त हस्तांतरण क्या है?

परिचय

हस्तांतरण से तात्पर्य ऐसे किसी भी कार्य से है जिसके द्वारा किसी संपत्ति को एक जीवित व्यक्ति से दूसरे जीवित व्यक्ति को हस्तांतरित किया जाता है, चाहे वर्तमान में हो या भविष्य में। ऐसे हस्तांतरण कई रूपों में हो सकते हैं जिनमें बिक्री, विनिमय, उपहार, बंधक, पट्टा, प्रभार आदि शामिल हैं। 

सशर्त अन्तरण

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 25 सशर्त हस्तांतरण का प्रावधान करती है[1]। इसका मतलब है कि संपत्ति के हस्तांतरण के लिए दूसरे पक्ष पर लगाई गई शर्त के पूरा होने पर होने वाला कोई भी हस्तांतरण।

संपत्तियों का हस्तांतरण मोटे तौर पर दो प्रकार का हो सकता है –

  • पूर्ण हस्तांतरण और
  • सशर्त हस्तांतरण।

पूर्ण हस्तांतरण से तात्पर्य ऐसी स्थितियों से है, जहाँ हस्तांतरित व्यक्ति को हस्तांतरित संपत्ति में बिना किसी बाधा और सीमा के पूर्ण, तत्काल और बिना शर्त अधिकार प्राप्त होता है।

दूसरी ओर, सशर्त हस्तांतरण वह होता है जिसमें हस्तांतरित व्यक्ति के पक्ष में एक हित बनाया जाता है जो संपत्ति के हस्तांतरण से जुड़ी किसी शर्त की पूर्ति या गैर-पूर्ति के अधीन होता है। 

संपत्ति कानून में सशर्त हस्तांतरण की अवधारणा

सम्पत्ति अन्तरण से सृष्ट और किसी शर्त पर निर्भर हित निष्फल हो जाता है,

  • यदि उस शर्त की पूर्ति असम्भव हो, या
  • विधि द्वारा निषिद्ध हो या
  • ऐसी प्रकृति कि यदि वह अनुज्ञात की जाये तो वह किसी विधि की हो, जो उपबन्धों को विफल कर देगी या कपटपूर्ण हो, या
  • ऐसी हो जिसमें किसी दूसरे के शरीर या सम्पत्ति को क्षति अन्तर्वलित या अन्तर्निहित हो, या
  • जिसे न्यायालय अनैतिक या लोकनीति के विरुद्ध समझता हो।

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 25 में कहा गया है कि कोई भी हस्तांतरण जो दूसरे पक्ष पर लगाई गई शर्त के पूरा होने पर होता है, सशर्त हस्तांतरण कहलाता है।

उदाहरण के लिए, यदि B को नौकरी के लिए चुना जाता है, तो A अपनी संपत्ति B को हस्तांतरित करने के लिए सहमत होता है। B को नौकरी पाने के लिए A द्वारा लगाई गई शर्त एक शर्त का उदाहरण है। 

दृष्टान्त

  1. 'स’ को 'क' कोई खेत प‌ट्टे पर इस शर्त पर देता है कि यह एक घण्टे में 100 मील पैदल चले। पट्टा शून्य है।
  2. 'ख' को 'क' 500 रुपये इस शर्त पर देता है कि वह 'क' की पुत्री 'ग' से विवाह करे। अन्तरण की तारीख पर "ग" की मृत्यु हो चुकी थी। अन्तरण शून्य है।
  3. "ख" को "क" 500 रुपये इस शर्त पर अन्तरित करता है कि यह "ग" की हत्या करे। अन्तरण शून्य है।
  4. "क" अपनी भतीजी "ग" को 500 रुपये इस शर्त पर अन्तरित करता है कि वह अपने पति का अभित्याग कर दे। अन्तरण शून्य है। 

सशर्त हस्तांतरण के वैध होने के लिए, लगाई गई शर्त निम्न नहीं होनी चाहिए:

  1. कानून द्वारा निषिद्ध,
  2. ऐसा कोई कार्य नहीं होना चाहिए जिसमें धोखाधड़ी शामिल हो,
  3. ऐसा कोई कार्य न हो जो असंभव हो,
  4. ऐसा कोई कार्य नहीं होना चाहिए जिसे सार्वजनिक नीति का उल्लंघन कहा जाए,
  5. अनैतिक नहीं होना चाहिए,
  6. कोई भी कार्य जिससे किसी व्यक्ति या उसकी संपत्ति को कोई नुकसान पहुँचता हो।

उदाहरण के लिए, यदि X, Y को संपत्ति 'B' इस शर्त पर हस्तांतरित करता है कि Y, Z की हत्या कर देगा, तो ऐसा हस्तांतरण अमान्य हो जाता है, क्योंकि यह शर्त कानून द्वारा निषिद्ध है। 

संपत्ति कानून में सशर्त हस्तांतरण के प्रकार

एक व्यक्ति जो सम्पत्ति अन्तरित करने के लिये सक्षम है वह सम्पत्ति का अन्तरण पूर्णरूपेण बिना किसी शर्त के कर सकता है या सशर्त। जब वह बिना शर्त के सम्पत्ति का अन्तरण करता है तब अन्तरिती को सम्पत्ति में सभी हित और अधिकार प्राप्त हो जाता है बिना किसी मर्यादा या प्रतिबन्ध के। परन्तु जहाँ वह सम्पत्ति का अन्तरण सशर्त करता है, वहाँ ऐसे अन्तरण का क्या विधिक परिणाम होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि शर्त की क्या प्रकृति है, अर्थात् ऐसी स्थिति में अन्तरण का विधिक परिणाम भिन्न-भिन्न होगा[2]

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 के तहत

  • पूर्ववर्ती शर्त,
  • अनुवर्ती शर्त और
  • संपार्श्विक शर्त

तीन प्रकार की शर्तें हैं , जो संपत्ति हस्तांतरण में कुछ शर्तों को पूरा करने के समय को नियंत्रित करती हैं।

1. पूर्ववर्ती शर्त (Condition precedent) 

पूर्ववर्ती शर्त एक ऐसी शर्त होती है जिसके पूरे होने पर ही अन्तरण प्रभावी होता है। पहले शर्त पूरी हो अब अन्तरण प्रभावी होगा। दूसरे शब्दों में शर्त अन्तरण की पूर्ववर्ती होती है। अन्तरण पूर्ववर्ती शर्त के पूरे होने पर ही निर्भर करता है। यदि शर्त पूरी न हो तो सम्पत्ति का अन्तरण नहीं होगा।

  • उदाहरण के लिये "क" अपनी सम्पत्ति "निलयम" का अन्तरण "ख" को इस शर्त के साथ करता है कि यदि वह "ग" से विवाह करे। यहाँ "ख" का "ग" से विवाह पूर्ववर्ती शर्त है। सम्पत्ति "निलयम" "ख" को तभी प्राप्त होगी यदि वह पहले "ग" से विवाह करे। यदि वह "ग" से विवाह नहीं करता है तो अन्तरण "ख" के पक्ष से प्रभावी नहीं होगा। विल्किन्सन बनाम विल्किन्सन[3] के मामले में, जहां हस्तांतरण के लिए एक पक्ष को अपने पति को छोड़ना आवश्यक था, तो शर्त को अमान्य माना जाएगा।

2. पश्चात्वर्ती शर्त (Condition subsequent) 

जैसा कि नाम से ही विदित है पश्चात्वर्ती शर्त वह होती है जिसे सम्पत्ति के अन्तरण के पश्चात् पूरा किया जाना होता है और यदि ऐसी पश्चात्वर्ती शर्त पूरी न की जाय तो अन्तरिती का सम्पत्ति में हित विफल हो जायेगा। दूसरे शब्दों में पश्चात्वर्ती शर्त अन्तरण की अनुगामी होती है।

  • उदाहरण के लिये "क" अपना मकान निलयम् "ख" को इस शर्त के साथ अन्तरित करता है कि यदि वह ‘ख’ अन्तरण की तिथि से दो वर्ष के भीतर "ग" से विवाह नहीं करेगा तो उसका हित "निलयम में समाप्त हो जायेगा। यहां "ख" को अन्तरण के दो वर्ष के भीतर "ग" से विवाह कर लेना चाहिये। यह एक पश्चात्वर्ती शर्त होगी। यदि "ख" इस अवधि में "ग" से विवाह नहीं करता है तो उसका हित "निलयम्" से समाप्त हो जायेगा।

3. साम्पार्श्विक शर्त (Collateral condition)

यह एक ऐसी शर्त होती है जिसका अन्तरण के साथ- साथ पूरा किया जाना होता है।

  • जैसे जहां "क" अपनी भूमि "ख" को पट्टे पर देता है जब तक "ख" उसी मकान में रहे जैसे "क"। यह एक ऐसा अन्तरण है जिसके साथ एक साम्पार्श्विक शर्त जुड़ी हुई है। पट्टा तब तक प्रभावी रहेगा या चालू रहेगा जब तक "ख" उसी मकान में रहे जैसे "क"। अंबिका चरण बनाम ससितारा[4] का मामला पुष्टि करता है कि इस धारा के तहत संपार्श्विक शर्तें भी वैध हैं। 

अन्य प्रकार की स्थितियाँ

1. शर्त की पूर्ति असम्भव (Impossible to perform)

जब शर्त की पूर्ति असम्भव हो तो न केवल वह शर्त शून्य हो जायेगी अपितु इस पर निर्भर अन्तरण भी शून्य हो जायेगा अर्थात् प्रभावी नहीं होगा।

  • जैसे जहाँ "ख" को "क" अपनी भूमि का पट्टा इस शर्त पर देता है कि वह (ख) एक घंटे में 100 मील पैदल चले वहाँ यह एक ऐसी पूर्ववर्ती शर्त है जिसका पूरा किया जाना असम्भव है। अतः भूमि का पट्टा शून्य है। एक असम्भव शर्त का अच्छा दृष्टान्त राजेन्द्र लाल बनाम मृनालिनी दासी[5]' नामक वाद है। वाद में तथ्यों के अनुसार वसीयतकर्ता ने एक वसीयती सम्पदा इस शर्त पर छोड़ी कि वसीयतदार एक तालाब का निर्माण करेगा परन्तु अपनी मृत्यु से पूर्व वसीयतकर्ता स्वयं ने उस तालाब का निर्माण करा दिया। यहां वसीयतदार के द्वारा शर्त (तालाब के निर्माण का) का पूरा किया जाना वसीयतदार स्वयं के कार्य से असम्भव हो गया। अतः वसीयत विफल हो गई। अजुधिया बनाम रखमन कौर[6] में वर्णित त्वरण का सिद्धांत कहता है कि यदि पहली शर्त विफल हो जाती है, तो संपत्ति दूसरे व्यक्ति को इस तरह से हस्तांतरित कर दी जानी चाहिए जैसे कि वह पहले व्यक्ति में कभी निहित ही न हो। यह सिद्धांत उपहार हस्तांतरण पर तब तक लागू नहीं होता जब तक कि पहला हस्तांतरण निर्दिष्ट तरीके से विफल न हो जाए।

2. शर्त अवैध हो (Condition illegal)

शर्त अवैध तब हो जायेगा जब अन्तरण का प्रतिफल या उद्देश्य-

  • विधि द्वारा विच्छेदित हो; या
  • ऐसी प्रकृति का हो कि वह अनुज्ञात हो जाय तो वह किसी विधि के उपबन्धों को विफल कर देगी; या
  • कपटपूर्ण हो; या
  • ऐसी हो जिसमें दूसरे के शरीर या सम्पत्ति को क्षति अन्तर्वलित या अन्तर्निहित हो; या
  • जिसे न्यायालय अनैतिक या लोकनीति के विरुद्ध मानता हो।

ध्यान रहे जहाँ पूर्ववर्ती शर्त अवैध है वहां अन्तरण शून्य हो जायेगा।

उपरोक्त परिस्थितियों में पूर्ववर्ती शर्त क्यों अविधिमान्य हो जाती है इसके पीछे विधि का यह सुस्थापित नियम है कि एक ऐसी शर्त जो लोकहित या लोकनीति के विरुद्ध है अवैध एवं शून्य है अतः जहां पूर्ववर्ती शर्त अनैतिक या लोकनीति के विरुद्ध है वहां उस पर आधारित अन्तरण भी शून्य हो जायेगा। 

पूर्ववर्ती शर्त और पश्चात्वर्ती शर्त में अन्तर

पूर्ववर्ती शर्त

पश्चात्वर्ती शर्त

पूर्ववर्ती शर्त की स्थिति में सम्पत्ति अन्तरिती में तब तक नहीं निहित होती जब तक कि शर्त सारतः पूरी न हो जाय।

पश्चात्वर्ती शर्त की स्थिति में सम्पत्ति अन्तरिती में तत्काल निहित हो जाती है और जब तक निहित रहती है जब तक पश्चात्वर्ती शर्त टूट न जाय।

अगर पूर्ववर्ती शर्त का पालन असम्भव है तो न केवल शर्त अपितु अन्तरण भी जो ऐसी शर्त पर आधारित है शून्य हो जाता है।

परन्तु पश्चात्वर्ती शर्त में यदि शर्त का पालन असम्भव है तो शर्त विफल हो जाती है और पूर्व अन्तरण आत्यन्तिक (पूर्ण) हो जाता है।

पूर्ववर्ती शर्त का सारतः पालन पर्याप्त है। अर्थात् यदि शर्त का ठीक उसी रूप में पालन नहीं किया गया जिस रूप में वह रखी गई है अपितु अधिकांशतः पालन कर दिया गया है तो शर्त के प्रयोजन के लिये पर्याप्त पालन माना जायेगा।

परन्तु पश्चात्वर्ती शर्त का कठोर रूप में (अर्थात् ठीक उसी रूप में जिस रूप में वह रखी गई है) पालन आवश्यक है।

यदि पूर्ववर्ती शर्त अवैध है तो वह अन्तरण जो इस पर निर्भर है विफल हो जाता है।

परन्तु यदि पश्चात्वर्ती शर्त अवैध है तो पूर्व हित या अन्तरण आत्यन्तिक हो जाता है और शर्त तिरस्कृत कर दी जाती है।

निष्कर्ष

संपत्ति कानून में सशर्त हस्तांतरण एक मौलिक अवधारणा है क्योंकि यह पक्षों को अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं और परिस्थितियों को पूरा करने के लिए संपत्ति लेनदेन को अनुकूलित करने की अनुमति देता है। संपत्ति हस्तांतरण की वैधता और प्रवर्तनीयता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रकार की शर्तों और उनके कानूनी निहितार्थों को समझना आवश्यक है। संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम में उल्लिखित सिद्धांतों का पालन करके, पक्ष सशर्त हस्तांतरण की जटिलताओं को नेविगेट कर सकते हैं और अपने संपत्ति हितों की रक्षा कर सकते हैं।


[1]. संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (Last Updated on October 30, 2024).

[2]. संपत्ति अंतरण अधिनियम (डॉक्टर टी पी त्रिपाठी) 2011 संस्करण.

[3]. एआईआर 1923 बॉम्बे 321.

[4].एआईआर 1916 कलकत्ता 654.

[5]. एआईआर 1922 कलकत्ता, 116.

[6]. [1883] 10 कैल 482.

Anish Sinha
How are Evidence Appreciated and Admitted under Indian Law?
The appreciation and admissibility of evidence in India are governed by the Indian Evidence Act, 1872, and Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023. This study examines key principles, judicial interpretations, and challenges shaping the role of evidence in ensuring justice.
Harish Khan
How does the Court of Justice of the European Union shape Legal Integration and EU Law?
The Court of Justice of the European Union ensures uniform application of EU law across Member States through direct proceedings and preliminary rulings. Its role in legal integration, judicial supremacy, and shaping key legal principles is pivotal for the EU.
Anish Sinha
How can Decrees Be Executed Effectively?
The execution of decrees under Order XXI CPC ensures judicial decisions are enforced effectively. Modes include delivery of property, attachment, arrest, receivership, partition, and monetary payments, upholding the rule of law and ensuring substantive justice.
Or
Powered by Lit Law
New Chat
Sources
No Sources Available
Ask AI