नंगे राष्ट्र का कानून

– बेरहम देश में महिलाओ के खिलाफ अपराध बहुत बढ़

नंगे राष्ट्र का कानून

– बेरहम


देश में महिलाओ के खिलाफ अपराध बहुत बढ़ रहे थे। राजा बड़ा चिंतित था।

एक नेता जी कहते है की जवान लड़को से भूल हो जाती है: आखिर पार्लियामेंट के उनके कई साथियो को बिना वजह ऐसी गलतियों के लिए फालतू मुक़दमे का सामना करना पड़ रहा है, तो कुछ जेल में समय काट रहे है। ऐसे लड़के बाहर निकल कर दोबारा किसी कुलटा की साजिशो के शिकार हो — फिर गलती ना कर बैठे, इसलिए उनको पैरोल पर Z+ सिक्योरिटी प्रदान करनी पड़ती है।

औरत का पल्लू खींचना जुर्म है, बदकिस्मती से हमारे कानून में, इस चक्कर में बड़ा समय और पैसा व्यर्थ होता है पुलिस और न्याय पालिकाओं पर। यदि औरतो को पल्लू पहनने से ही मना कर दिया जाये तो मामला सुधर सकता है।

न रहेगी बाँस, न बजेगी बाँसुरी।

जब पल्लू रहेगा ही नहीं तो पूरी टक-टकी से ताड़ा जा सकता है; और वह जुर्म थोड़े ही है ?

न्याय पालिका का बोझ हल्का होगा – सो अलग। फिर राष्ट्र निर्माण पर ज्यादा ध्यान लगाया जा सकेगा।

राजा ने उस साल स्वतंत्रता दिवस पर जनसभा में एक भाषण दिया, “हमे राष्ट्र निर्माण की हर बाधा को हटाना होगा। यदि कोई पुरानी सभ्यताओं की मर्यादा, राष्ट्र हित और उसके गौरव की प्रगतिमार्ग पर रोड़ा अटका रही है तो उसको ध्वस्त करना हमारा सर्वोपरि राष्ट्र कर्त्तव्य है। हमारा राष्ट्र धर्म-निरपेक्षता की कसौटी पर बना है। यहाँ, हमारा कानून धर्म से बड़ा है। धर्म और उसके बताये गए उपदेशो के चक्कर में सदियों तक हमारे देश ने बड़ी दिक्कते झेली है । पर अब हम मॉडर्न युग में है, हम धर्म जैसे पाखंड द्वारा परिभाषित हर चीज़ के खिलाफ है। मर्यादा क्या होगी यह धर्म या हमारी संस्कृति नहीं बताएगी, यह हमारा कानून बताएगा!!!”

पूरा समां तालियों की गड़गड़ाहटों से गूंज गया। कई नौजवानो ने तो मधुबाला और वैजयंतीमाला जैसी अदाकारिओ के नाम मिटवा, अपने छाती पर राजा का टैटू बनवा लिया।

संसद में मशवरे के दौरान किसी ने राजा और उसके सांसदों को सुझाया कि “केवल दुपट्टा या पल्लू बैन करने से कुछ नहीं होगा, हुज़ूर। फिर तो लड़के और उत्साहित हो ब्लाउज खींचने पर आ जायेंगे, उससे तो फिर वही प्रकरण वापस चालू हो जायेगा ?”

बात तो पते की बोली थी, सो तुरंत फरमान आया की अब से देश की कोई भी महिला ब्लाउज नहीं पहनेगी और अपना ऊपरी शरीर नहीं ढकेगी । समस्या का समाधान कर यह प्रफुल्लित मान्यवरों की सभा राष्ट्र गान गाने उठ खड़ी हुई।
नारे लगे :

“राष्ट्र माता की जय !!!!”

“राष्ट्र माता की जय !!!!”

“राष्ट्र माता की जय !!!!”

कुछ दिन बाद खबरे आयी की २ जवान मंत्रियो ने सदन की कार्यवाहियाँ ख़त्म कर शाम में चाय नाश्ता करने हेतु एक शाकाहारी भोजनालय में प्रस्थान किया। वहाँ इन मान्यवरों ने देश की एक कानून पालनकर्ता – १४ साल की अर्ध नग्न बच्ची स्कूल से घर आते हुए देखीं । अब मंत्री थे तो लौंडा ही, गलती कर बैठे। बवाल उठा की मुकदमा होगा।

फिर तो महीने भर के अंदर पूरे प्रदेश से खबरे आने लगी की फलां फलां जगह पर किसी महिला का पायजामा, तो कही उसका पेटीकोट उतरवा उनका अपमान किया जा रहा है। न्याय पालिका में मुक़दमे बढ़े तो वह भी खीझ उठी। आखिर राष्ट्र निर्माण के लिये ज़रूरी था की ऐसे मामलो में कमी आये।

आखिरकार उच्च न्याय पालिका के उन प्रबुद्ध न्यायाधीशों ने देश हित में अपनी ज़िम्मेदारी का कार्यवाहन किया। अदालत का फरमान आया कि “‘ब्लाउज बैन’ कानून की मूलभावना का सम्मान रखने हेतु महिलाओ द्वारा पेटीकोट व नाभि के नीचे पहने जाने वाले वस्त्रो को शरीर पर डालना कानून विरोधी व राष्ट्र विरोधी है। औरत का कपड़े पहनना चूँकि राष्ट्र विरोधी है इसलिए वह हमारे राष्ट्र के कानून की मर्यादा के खिलाफ है। और जो भी मर्यादा के खिलाफ है उसको अश्लीलता की श्रेणी में रखा जाता है । औरत के शरीर पर कपड़े अश्लील करार दिए गए। उससे राष्ट्र की पब्लिक आर्डर व कानूनी व्यवस्था को घातक हानि हो रही है। समाज में उनके कपड़े पहनने की ज़िद से अपराध बढ़ रहे है, और इस अराजक स्थिति की सम्पूर्ण ज़िम्मेदार यह महिलाये है।”

अदालत ने इन सभी अश्लील औरतो को अराजकता फैलाने के जुर्म में ५ लाख का जुरमाना थोपा और निर्देश जारी कर दिए की अब से कोई महिला कपड़ें नहीं पहनेगी। यदि कोई महिला कपड़ो के साथ दिख गयी तो उस पर राष्ट्र विरोधी गतिविधिओ के लिए मुकदमा चलाया जायेगा और उसकी निजी संपत्ति बुलडोज़र से तोड़ दी जाएगी।

फैसला जारी करने के बाद उच्च न्याययाल में राष्ट्र गान के साथ तीन बार नारे लगे :

“राष्ट्र माता की जय !!!”

“राष्ट्र माता की जय !!!”

“राष्ट्र माता की जय !!!”

अखबारों में फैसले की बड़ी प्रशंसा हुई। राजा ने मुख्या न्यायधीश को रिटायरमेंट के बाद सर्वोच्च नागरिक की उपाधि से पुरुस्कृत कर उनको मंत्री मंडल में “महिला एवं बाल कल्याण” का मंत्रालय सौपा। उनकी मृत्यु के बाद उनके जन्मदिन पर “महिला न्याय दिवस” मनाने की घोषणा की गयी। उनके नाम पर कई राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों के नाम रखे गए। उच्च न्यायालय में स्थापित उनकी मूर्ति पर अब हर साल फूल चढ़ते थे और भव्य सम्मान समारोह आयोजित किया जाता था।

पर इन सबके चलते बलात्कार की समस्या का हल नहीं हो पा रहा था। उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद समाज में महिला के कपड़े खींचने के मामले तो अब सालो से नहीं आ रहे थे, जबकि उसका कानून आज भी राष्ट्रीय दंड संहिता में ज़िंदा मौजूद था।
पर बलात्कार के मामलो में कई फीसदी वृद्धि दर्ज़ की जाने लगी।

अब बलात्कार के मुकदमो पर तथाकथित मासूम लौंडे और मंत्री पहले से कई गुना ज्यादा फँसने लगे।

इस राष्ट्रीय समस्या के समाधान के लिए इस बार जन आंदोलन हुआ। बनना खजारे नामक एक राष्ट्रीय योद्धा ने इस आंदोलन की कमान संभाली। अपनी जवानी में एक महिला का पल्लू खींचने के जुर्म में उस पुराने क्रूर कानून के तहत उसने २ साल जेल में, देश के नाम न्योछावर किये थे। अब ७६ साल की उम्र में उन्होंने फिर राष्ट्र कर्त्तव्य की पुकार सुनी।

करोड़ो का जन सैलाब लेकर उन्होंने राजधानी में चक्का जाम कर दिया। राजा ने भी जन की पुकार का मान रखा।

जन आंदोलन सफल हुआ। बलात्कार कानून राष्ट्र विरोधी घोषित कर उसको निष्कासित किया गया।

खजारे जी की जब मृत्यु हुई, उनकी स्मृति में राजा ने ४०० मीटर दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति बनवायी; नाम रखा “स्टेचू ऑफ़ नेशन”।


पर समस्या अभी भी खत्म नहीं हो रही थी।

वैश्याखानो में वृद्धि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद से ही थी और उसे एक सम्मानित पेशे के तौर पर देखा जाने लगा था, पर अब तो औरत का गोश्त काट काट कर कस्साई बाजार में बिकना चालू हो गया था। पूरी दुनिया में औरत का गोश्त एक्सपोर्ट करने वाला यही एक राष्ट्र था। सो मोटा पैसा आता था इस धंधे से।

चूँकि ज्यादा पैसा आएगा तभी राष्ट्र और तेज़ी से तरक्की करेगा, सो इस अवैध गोश्त के व्यापार में भोले भले लौंडे और मंत्री अपना राष्ट्र कर्त्तव्य का पालन करते हेतु हाथ आज़माने लग गए। पर क़त्ल और जिस्म की तस्करी के मुकदमो में कुछ सामाजिक कार्यकर्ता उनको फिर फंसा दे रहे थे और उनको जेल भेज दे रहे थे।

भारी आर्थिक संकट के कारण देश में बड़ी दिक्कत पहले से ही थी ।

राजा ने औरत के गोश्त को नैतिक तौर पर गलत मान एक जन सभा में दुःख प्रकट किया, थोड़ा रोये भी।

पर आर्थिक मजबूरी बता उसको लाइसेंस राज में ले आये।

अब महिला का गोश्त बिक तो सकता था परन्तु केवल सरकारी परमिट पर।

चूँकि नैतिक मर्यादा के खिलाफ था तो कानून बनाया गया की गोश्त को सील्ड पैकेट में बेचना है और उस पर कानूनन 2 इश्तेहार लगाने अनिवार्य थे :
”कन्या भ्रूण हत्या एक कानूनी अपराध है”
”औरत का गोश्त खाना नैतिक तौर पर गलत है”

परमिट से आया पैसा सरकार “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” स्कीम में लगाती थी।

देश में औरत के कपड़े खींचना आज भी राष्ट्र दंड सहिंता के अंतर्गत जुर्म है।

Anish Sinha
Reinstating Practice: Evaluating the Judicial Entry Framework in India and Comparative Jurisdictions
The Supreme Court of India reinstated a 3-year legal practice requirement for entry-level judicial posts, emphasizing the need for real-world experience to enhance judicial competence. This aligns India with common law traditions, prioritizing practical wisdom.
Anish Sinha
Soaring High: How GIFT City is Making India a Global Aircraft Leasing Powerhouse
GIFT City is transforming India into a global aircraft leasing hub, reducing reliance on foreign lessors. With tax exemptions, regulatory clarity, and flexible leasing models, it’s driving economic resilience and aviation growth, positioning India to own the skies.
Anish Sinha
Counting for Justice: India’s Caste Census and the Road to Equality
India's caste census, the first since 1931, aims to refine welfare and affirmative action but risks deepening divisions. Balancing equity and unity, it tests India's democratic resolve to use data for justice without fueling identity politics.
Or
Powered by Lit Law
New Chat
Sources
No Sources Available
Ask AI